Message: Return type of CI_Session_files_driver::open($save_path, $name) should either be compatible with SessionHandlerInterface::open(string $path, string $name): bool, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
Message: Return type of CI_Session_files_driver::close() should either be compatible with SessionHandlerInterface::close(): bool, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
Message: Return type of CI_Session_files_driver::read($session_id) should either be compatible with SessionHandlerInterface::read(string $id): string|false, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
Message: Return type of CI_Session_files_driver::write($session_id, $session_data) should either be compatible with SessionHandlerInterface::write(string $id, string $data): bool, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
Message: Return type of CI_Session_files_driver::destroy($session_id) should either be compatible with SessionHandlerInterface::destroy(string $id): bool, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
Message: Return type of CI_Session_files_driver::gc($maxlifetime) should either be compatible with SessionHandlerInterface::gc(int $max_lifetime): int|false, or the #[\ReturnTypeWillChange] attribute should be used to temporarily suppress the notice
भारत का संविधान, भारत की आत्मा है इसके द्वारा ही देश का संचालन हो रहा है।
संविधान मुख्यतः चार बातें दिखाता है:
1. भारत में सरकार कैसे बनेगी।
2. उसका लोगों के साथ कैसा संबंध होगा।
3. सरकार पर क्या-क्या नियंत्रण होंगे (इसलिए मूल अधिकार और मूल कर्तव्य लिखे गए और उनकी रक्षा के लिए न्यायपालिका को उनका संरक्षक बनाया गया मतलब हमारा संविधान नागरिक केंद्रित है सरकार केंद्रित नहीं)
4. संविधान सभी कानूनों का स्रोत है और साथ ही एक देश के रूप में भारत के क्या उद्देश्य होंगे और दुनिया के प्रति भारत की क्या जिम्मेदारियां होंगी वो भी संविधान में वर्णित है (राज्य नीति के निदेशक तत्व..जिसमे सरकार के लिए विविध प्रकार के आदर्शो को कार्यान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है जिसमें पर्यावरण की रक्षा और अंतरराष्ट्रीय शांति सद्भाव बनाए रखना भी शामिल है।)
जब 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया, तब देश के उस समय के राजनेताओं ने इस बात को अनुभव किया कि देश को संचालन करने के लिए संविधान की जरूरत पड़ेगी। इसलिए संविधान सभा का गठन हुआ। जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया। डॉ भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे जिन्होंने 26 नवंबर 1949 को संविधान का निर्माण किया था। परन्तु इसे 26 जनवरी 1950 को देश में लागू किया गया। भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। यह लोकतंत्र के तीन स्तंभों– विधान पालिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के कामकाज के लिए दिशानिर्देश जारी करता है I
यह भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों और विशेषाधिकारों को भी सुनिश्चित करता है। संविधान का क्या उद्देश्य है ये बताने के लिए पहले एक उद्देशिका है जिसे संविधान का मूलभूत सार माना जाता है। इसे पढ़ने से संविधान का उद्देश्य पता चलता है एवं संविधान का दर्शन भी ज्ञात होता है। यही कारण है कि उद्देशिका को संविधान की आत्मा कहा जाता है। इसे भारतीय संविधान का हृदय भी कहा जाता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने उद्देशिका को भारतीय संविधान की आत्मा कहा था। भारतीय संविधान की उद्देशिका में भारतीय आत्मा का बोध होता है इसे पढ़ें, जिसमें लिखा हुआ है - "हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 (मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
भारत की आत्मा याने भारत का जीवन दर्शन- सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया-सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्, मातृवत् पर दारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सत्यमेव जयते, जीओ और जीने दो, कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, वसुधैव कुटुम्बकम् आदि चिरपुरातन हैं, जो हमें हमारे संविधान में देखने को मिलता है। भारतीय जीवन दर्शन में प्राणी मात्र के रक्षण की बात की गई है। जीव-जन्तु-वनस्पति- नदी-पहाड़-आकाश- जल-वायु सब के रक्षण एवं संरक्षण की बात है। इतना ही नही भारतीय जीवन दर्शन में प्राणी मात्र के जीवन रक्षण, अधिकारों को मान्यता हैI जीव-जन्तु-वनस्पति-नदी- नाले-पहाड़-आकाश-जल-वायु सबके पोषण की बात हैI जल-जंगल-जमीन-जीव-जन्तु-आदि सबको संविधान ने जीवित मानकर उनके रक्षण-पोषण व अधिकार की बात की है। इन बातों के साथ-साथ भारत के जीवन दर्शन की विशेषता: अन्वेषण और अनुभवों के आधार पर नये-नये बिंदुओ को जोड़ना और कालबाह्य परम्पराओ, बिंदुओ को छोड़ना, जो हमारे संविधान की भी विशेषता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने विधानपालिका, न्यायपालिका को ये अधिकार दिया है जिसके आधार पर संविधान को 105 बार संशोधित किया जा चुका है। किंतु सरकार संविधान के मूलभूत सिद्धांतों को नहीं बदल सकती..जो यह दिखाता है कि हमारा संविधान नई चुनौतियों और अवसरों को आत्मसात करने का अवसर देता है। कोई भी सरकार मनमानी करके संविधान के मूलभूत ढांचे को नही बदल सकती। यही कारण है की हमारे देश में तमाम चुनौतियों के बावजूद लोकतंत्र मौजूद है और सैन्य शासन जैसी विकृतियों से हम बच पाए हैं। संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाते समय जो मूल बातें संविधान को भारत की आत्मा से जोड़े रखने के लिए रखी, वर्तमान समय में विधानपालिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, उन सिद्धांतों और बिन्दुओं को ध्यान में रखकर ही आवश्कतानुसार संशोधन करें। इसीलिए नंदलाल बोस जी जिन्होंने संविधान के लिए चित्र बनाए है उन्होंने मूलाधिकारों वाले भाग से पहले श्री राम जी का चित्र बनाया है..जो संविधान द्वारा रामराज्य को क्रियान्वित करने का द्योतक है। जब कोई भी भारतीय उपरोक्त बिंदुओ को आत्मसात करेगा तो उसको संविधान की आत्मा में भारतीयता नजर आएगी। जिसमें साफ-साफ लिखा हुआ है हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए एक साथ हैं। भारतीय संविधान जनता के हित के लिए है और जनता ही आखिर सम्प्रभु है। "परहित, सर्वहित, सबका मंगल, विश्व का कल्याण, जीओ और जीने दो"- ये भारत की आत्मा है जो हमें हमारे संविधान में प्रचुर मात्रा में दिखाई देता है।
Leave a comment